卐 ॐ श्री गणेशाय नमः 卐
पीरी-अनादि तपोभूमि
वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि। मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥
श्री रविन्द्र प्रसाद देवज्ञ आचार्य हैं और माँ बगलामुखी के सिद्ध साधक है वे निरंतर ध्यान मुद्रा में रहते हैं | भूमि पूजन के दिन आचार्य जी पीरी में उपस्थित थे और वहां उन्होंने पीरी की पवित्र धरा पर भी ध्यान में ही लीन रहे, प्रस्फुटित ध्यानावस्था के दौरान पीरी से सम्बन्धित आध्यात्मिक, दार्शनिक एवं पौराणिक आप्तविश्लेषण इस प्रकार है –
“पीरी” एक वृध्दावस्था है। पीर यानि सिद्ध व संत होने की अवस्था है। पीरी यानि पियरी/ पीला अर्थात् पीताम्बरा बगलामुखी की सिद्ध साधना करने वाला कोई फरिस्ता पूरा काल में होगा, जो पीताम्बरा की साधना किया होगा। पीताम्बरा से पीत/पियरी से पीरी हुआ होगा। उन्होंने ही यह बतलाया कि इस पुरे क्षेत्र में यही वह स्थल है जिसकी भूमि पीली है और यह अनादि काल में तपोभूमि थी, उन्होंने यह भी बतलाया कि इस भूमि पर धाम का निर्माण अनादि काल से ही पूर्व निर्धारित था |
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार वसुधा धार – उद्धार की है। वसुधा जिसको धारती है, उसको ही मिलती है तथा वसुधा जो धारती है/धारण करती है, वह अवश्य प्रकट होती है।
धाम के लिए निर्धारित भूमि पर विहार एवं निरीक्षण के दौरान पीरी से सम्बन्धित प्रस्फुटित विचार सत्य सिद्ध होता दिखा। यहाँ की मिट्टी पीली है। यह पीताम्बरा भूमि है। मंदिर के संस्थापको के सम्पूर्ण परिवार के जन्म – जन्मान्तर, युग – युगान्तर एवं कल्प – कल्पान्तर के पुण्यों का परिणाम है, विस्तृत एवं विशाल आध्यात्मिक – स्वरूप का मूर्त रूप निर्माण।
इनके पूर्वजों की महत्ती कृपा है। मन्दिर का निर्माण यानि मुक्ति का मार्ग प्रशस्त। संस्थापको ने बताया कि “उदधिक्रमण संकट मोचन धाम” नाम रखा है। बहुत ही सुन्दर एवं प्रभावशाली नाम है। हनुमान जी के बारह नामों में से ‘उदधिक्रमण’ भी एक नाम है। यथा,
हनुमान् अंजनीसूनु वायुपुत्रो महाबलः। रामेष्टः फाल्गुनसखः पिंगलोऽमितविक्रमः।।
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशनः। लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा ।।
एतद् द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मनः।स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च यः पठेत्।।
तस्य सर्व भयं नास्ति रणे च विजयी भवेत् । राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन।।
हनुमान, अंजनीसुनु/ अंजनीपुत्र, वायुपुत्र, महाबल, रामेष्ट, फाल्गुनसखा, पिंगाक्ष, अमितविक्रम, उदधिक्रमण, सीताशोकविनाशन, लक्ष्मणप्राणदाता, दशग्रीवदर्पहा – यह बारह नाम श्री हनुमान जी के गुणों को दर्शाते हैं। श्री राम और सीता जी के प्रति जो सेवा कार्य उनके द्वारा हुए हैं, उन सब की ओर इन्हीं नामों – द्वारा संकेत हो जाता है और यही श्री हनुमान जी की स्तुति है। श्री हनुमान जी के इन बारह नामों का जो रात्रि में सोने के समय या प्रातः काल उठने पर अथवा यात्रा आरम्भ के समय पाठ करता है, उस व्यक्ति के समस्त भय दूर हो जाते हैं। वह व्यक्ति युद्ध के मैदान में, राज दरबार में या भीषण संकट जहाँ कहीं भी हो उसे कोई भय नहीं होता। इसलिए, श्री हनुमान जी को संकट मोचन कहा कहा जाता है। संकट मोचन हनुमानाष्टक में तुलसीदास जी लिखते हैं,
को नहिं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो।
जिनके भी मन में “उदधिक्रमण संकट मोचन धाम” नाम आया, यह उनके मन की उपज नहीं है। बल्कि, उदधि- मध्य मणिमण्डप – रत्न- सिंहासनारूढ़ भगवती पीताम्बरा – बगलामुखी – वल्गा द्वारा बलात् आकर्षित एवं स्थापित कर संस्थापकों मन – मस्तिष्क से प्रस्फुटित, प्रकटित एवं नामांकित हुआ है।
मध्ये सुधाब्धि मणिमण्डप रत्नवेद्यां, सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम्।
पीताम्बराभरणमाल्य विभूषितांगीं, देवीं भजामि धृत मुद्गर वैरिजिह्वाम्।।
सुधा-सागर के बीच में मणिमण्डप के रत्नों की बनी वेदी पर विराजमान सिंहासन पर बैठी हुई गौरवर्ण वाली, पीताम्बर एवं अनेक प्रकार के आभूषणों तथा मालाओं से सुसज्जित शरीर वाली,हाथों में शत्रुओं की जिह्वा एवं मुद्गर धारण करने वाली श्री बगलामुखी देवी की महत्ती कृपा एवं प्रेरणा से उदधिक्रमण संकट मोचन धाम की स्थापना संभव हो पा रही है|
इन प्रमाणिक वचनों से सिद्ध होता है कि पीरी एक सामान्य गाँव नहीं, ग्राम नहीं; बल्कि अनादि धाम है। जहाँ अनादि काल से इच्छा पूरी हो रही है एवं अनन्त काल तक पूरी होती रहेगी, वही पूरी पीरी है; जहाँ की वसुधा ,वसुन्धरा, पृथ्वी पूरी पीली है। पीरी पूर्णता का प्रतीक है।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।
वह पूर्ण है और यह भी पूर्ण है। क्योंकि, पूर्ण से पूर्ण की उत्पत्ति होती है और पूर्ण का पूर्णत्व लेकर पूर्ण ही शेष रहता है।
अतः यहाँ पीरी-पीताम्बरा-वसुधन्धरा पूर्ण है और पूर्ण से पूर्ण उदधिक्रमण संकट मोचन धाम की स्थापना से उदधिक्रमण संकट मोचन धाम शेष – रूप में पीरी पूर्ण है। पूर्ण को पूर्ण नमन।
पीरी धरायै च पीताम्बरायै। नमो वल्गायै च नमः परायै।।
हमारे तंत्र शास्त्र में दस महाविद्याओं का वर्णन है। तंत्र साधकों के लिए दश महाविद्या की साधना उच्च कोटि की होती है। दश महाविद्याएँ क्रमशः इस प्रकार हैं :–
(01) काली (02) तारा (03) षोडशी/ त्रिपुर सुन्दरी (04) भुवनेश्वरी/ राज राजेश्वरी (05) छिन्नमस्ता (06) त्रिपुर भैरवी (07) धूमावती (08) बगलामुखी (09) मातंगी और (10) कमला।
काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी। भैरवी छिन्नमस्ता च धूमावती तथा।।
बगला सिद्ध विद्या च मातंगी कमलात्मिका । एतादश महाविद्याः सिद्धविद्याः प्रकीर्तिता।।
इन्हीं दश महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या हैं, भगवती बगलामुखी। मन्दिर के लिए आठ एकड़ जमीन अधिगृहित कर देना आठवीं महाविद्या बगलामुखी का ही प्रभाव है। आठ एकड़ जमीन आठवीं महाविद्या भगवती बगलामुखी को पूरा काल से ही अधिगृहित थी,जो आज सद्यः ही अधिगृहित हो गयी। सबके दृष्टिगोचर है।
जब हम पीरी के वर्णाक्षरों पर विचार करते हैं, तो देखते हैं कि पीरी चार वर्णों के मेल से बना है, प ई र ई, जिसमें दो व्यंजन प और र तथा दो स्वर ई और ई हैं। प यानि परम और ई यानि शक्ति अर्थात् परम शक्ति पी। तथा र यानि रहस्यमय और ई यानि शक्ति अर्थात् रहस्यमय शक्ति री। पीरी अर्थात् परम शक्ति एवं रहस्यमय शक्ति यानि परम रहस्यमय शक्ति ही पीरी है। परम रहस्यमय शक्ति यानि स्तम्भण शक्ति अर्थात् पीताम्बरा परा शक्ति भगवती बगलामुखी की नित्य निरन्तरता अनादि काल से सिद्ध होती है, जो पीरी के रूप में परिलक्षित है।
प और र यानि पर तथा द्वय ई महाशक्ति अर्थात् पर शक्ति यानि परा शक्ति/ महाशक्ति पीरी ही पीताम्बरा है।
पकारेण परमं स्यादीकारेण ईश्वरी तथा रकारेण रहस्यं च ईकारेण तु ईश्वरी सदा।
परमेश्वरी रहस्यमयी शक्तिश्च वल्गा पुरा। पीरी पीताम्बरा पीत वसुधा वसुन्धरा च।।
प यानि परमेश्वर ई यानि शक्ति अर्थात् पी परमेश्वरी है। र यानि रहस्यमय ई यानि शक्ति अर्थात् री रहस्यमयी शक्ति। रहस्यमयी परमेश्वरी शक्ति पराम्बा- पीताम्बरा भगवती बगलामुखी – पीरी है। यथा,
एकैव शक्तिः परमेश्वरस्य, विविधा वदन्ति व्यवहार काले।
भोगे भवानी पुरुषेषु लक्ष्मीः,कोपे तु दुर्गा प्रलये तु काली ।।
शक्ति ही सर्वत्र एवं सर्व संनिहित है। समय -समय पर शक्ति ही विविध रूपों में प्रकट होती हैं। बगला-शक्ति ही यहाँ राम दरबार एवं शिव परिवार आदि रूपों में स्थापित एवं प्रतिष्ठापित हैं।
बीजात्मक दृष्टिकोण से स्पष्ट होता है कि पीरी में दो वर्ण है, पी और री। पी से पीं और री से रीं बीज बनता है। बीज ही सृष्टि का आदि मूल है। तंत्र साधना में बीज सर्वोपरि है। बीज-साधना व्यष्टि कासमष्टि रूप है। समष्टि से व्यष्टि का दर्शन है, बीज।
पी शक्ति का बीज है, ऊर्जा का बीज है। यह शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। इस बीज में भय एवं नकारात्मकता को दूर करने की अदम्य शक्ति है। यह पीताम्बरा का बीज मंत्र है। इस बीज मंत्र से जीवन में सकारात्मकता आती है एवं सर्वत्र विजय होता है। भगवती पीताम्बरा की कृपा प्राप्त होती है। पीं शिव – शक्ति काली बीज भी है। बगलामुखी महारूद्र की महाशक्ति हैं। यहाँ शिव परिवार की स्थापना अध्यात्म एवं दर्शन सम्मत है।
वहीं रीं बीज श्री राम से सम्बन्धित है। श्री राम की शक्ति है रीं बीज। इस बीज से भगवान श्री राम की शक्ति, कृपा और सुरक्षा प्राप्त होती है। यह बीज शान्त और मन को केन्द्रित करने में सहायक है। साथ ही साधक को स्वयं और उच्च शक्तियों के साथ अधिक तालमेल रखने में मदद मिलती है।
पीरी के बीज मंत्रों पीं और रीं से सुस्पष्ट हो गया कि यहाँ राम दरबार और शिव परिवार यों ही अनायास नहीं बन गया। यह निर्णय पूर्व निर्धारित अनादि काल से है।
पीरी का प पृथ्वी बीज है और ई उसकी व्यापक शक्ति। वहीं पीरी का र अग्नि बीज है और ई उसकी व्यापक शक्ति । अर्थात् पृथ्वी तत्त्व और अग्नि तत्त्व यानि इस भू – खण्ड पर अखण्ड ऊर्जा का अक्षय भण्डार है। आध्यात्मिक ऊर्जा का यह Power House है, पीरी ग्राम – धाम।
पीरी पुरुषार्थचतुष्टय धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की पावन – स्थली है। पीरी का प – पवित्र धर्म है, ई – ईश्वरी लक्ष्मी अर्थ है, र – रति कामदेव काम/इच्छा है और ई-ईश्वरी मोक्ष है। पीरी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष दायिनि है।
यत्रास्ति भोगो नहि तत्र मोक्षः, यत्रास्ति मोक्षो नहि तत्र भोगः।
श्री सुन्दरी सेवन तत्पराणां, भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव॥
जहाँ भोग है, वहाँ मोक्ष नहीं और जहाँ मोक्ष है, वहाँ भोग नहीं। लेकिन, भगवती श्री सुन्दरी-पीताम्बरा – पीरी की उपासना – साधना से भोग और मोक्ष भक्त को दोनों ही प्राप्त होते हैं। ” यं यं चिन्तयते कामों तं तं प्राप्नोति निश्चितम् ” अर्थात् भक्त जिस- जिस अभीष्ट वस्तु का चिन्तन करता है, उस-उस को निश्चय ही वह प्राप्त कर लेता है।यह पीरी भगवती पीताम्बरा का अनादि धाम है।
पीरी यानि पी – पिओ/रसपान करो, री – रीझ कर। अर्थात् रीझ कर/प्रेमपूर्वक / श्रद्धा भक्ति से पिओ, पीरी – पान करो, रसपान करो, भक्ति – रस पान करो। रीझ कर भक्ति रस पीने का नाम है, पीरी। लेकिन, पीयेगा कौन? इसका भी समाधान है। श्रीमद् भागवत महापुराण में व्यास जी कहते हैं कि जो रसिक और भावुक होगा, वही पीरी यानि रीझकर भक्ति – रस पान करेगा। यथा, “रसिका भुवि भावुका।”
पी यानि पीय/पिय/प्रियतम यानि जहाँ प्रियतम होंगे वहाँ री यानि शक्ति / प्रियतमा अवश्य होगी।पिय हिय की सिम जानन हारी” भी तो वहीं रहेंगी। जहाँ राम वहीं सीता और जहाँ शिव वहीं शिवा। राम दरबार और शिव परिवार की स्थापना यह प्रमाणित करता है कि धाम का सम्बन्ध अनादि पीरी से है।
पीरी दो अक्षरों के मेल से बना है पी और री । पी पुलिंग है और री स्त्रीलिंग। पी शिव है और री शक्ति। यह शिव – शक्ति का क्षेत्र है, जहाँ शिव और शक्ति की स्थापना है। शिव परिवार और राम दरबार आदि – आदि।
पीर ई पीरी यानि पीर व पीड़ा/दुःख / दर्द मिटाने वाली ई शक्ति, जहाँ विराजमान हो, वह स्थल पीरी – पीताम्बरा है।
पीर यानि फकीर / फरिस्ता, जिसे स्वर्ग से साधना के लिए भेजा गया। ई यानि शक्ति की साधना वह किया। उनकी निरन्तर साधना से साधना – स्थल की मिट्टी पीले रंग की हो गयी, जो आज भी दृष्टिगोचर है। यह पीतवर्णा वसुन्धरा पीताम्बरा पीरी की पवित्र भूमि है।
पीरी को अंग्रेजी में सुविधा के लिए PIRI लिखा जा रहा है। जबकि, पी और री में बड़ी ई की मात्रा लगी है, जिसे अंग्रेजी में PEEREE लिखा जाना समीचीन लग रहा है। प्रमाणिकता के लिए यहाँ ज्योतिषीय गणना किया जाना भी उचित होगा।
अंकज्योतिष के अनुसार P – 7, E – 5, E – 5, R – 9, E – 5, E – 5 है। जिसका कुल योग 36 होता है। जो भगवती बगलामुखी का पूर्ण अंक है। अतः ज्योतिषीय गणना से भी स्पष्ट हो गया कि पीरी भगवती पीतांबरा बगलामुखी का क्षेत्र है।
पीरी PEEREE के कुल 36 अंकों के 03 और 06 को जोडने पर 09 मूलांक यानि मूल अंक बनता है। ज्योतिष के अनुसार 09 अंक को एकरस, ब्रह्मरस, समरस, ब्रह्म अंक कहा जाता है। यह ब्रह्मत्व को प्रमाणित करने वाला अंक है। ब्रह्म अंक 09 से यह प्रमाणित होता है कि पीरी अनादि ब्रह्म क्षेत्र है। ब्रह्म क्षेत्र में ब्रह्म की स्थापना ब्रह्मांक है। पीरी में भगवान श्रीराम की स्थापना ब्रह्म अंक से प्रमाणित है। क्योंकि, भगवान श्रीराम पूर्ण ब्रह्म हैं। राम में र आ म है,जिसकी संख्या क्रमशः र – 27, आ – 2, म – 25 है ,जिसका कुल योग 54 होता है और इसका मूलांक 09 होता है। अर्थात् पीरी ब्रह्म और राम भी ब्रह्म। यह दिव्य संयोग है, अनादि संयोग है।
वहीं जब भगवती सीता का मूलांक निकालते हैं, तो स – 32 , ई – 04 , त – 16 ,आ – 02 का कुल योग 54 होता है और इसका मूलांक 09 होता है। राम – 54 और सीता – 54 है। दोनों का योग पूर्ण माला 108 है। सीता राम पूर्ण ब्रह्म हैं।ब्रह्मैव ब्रह्म वर्तते अर्थात् ब्रह्म में ही ब्रह्म निवास करता है।
सीय राममय सब जग जानी । करउँ प्रणाम जोरि जुग पानी।।
श्री दुर्गासप्तशती के कुञ्जिका स्तोत्र के 08 वें श्लोक में ” पां पीं पूं पार्वती पूर्णा ” मंत्र आया है। पीं बीज मंत्र पीरी का प्रथमाक्षर है। भगवती पार्वती पूर्णा सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली हैं। मूल आदि शक्ति पार्वती से ही दश महाविद्याओं का प्राकट्य हुआ है। यानि पार्वती ही पीताम्बरा हैं, जिनका बीज पीं है। यही पीरी का पी है।
वहीं पीरी का द्वितीयाक्षर री है,जो श्री दुर्गासप्तशती के शापोद्धार के प्रथम मंत्र में आया है। यथा, ” ॐ ( ह्रीं ) रीं रेतः स्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिन्यै ब्रह्मवशिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव।” यहाँ रीं रेतः आया है। रेतः यानि वीर्य, शक्ति अर्थात् सृष्टि का कारक तत्त्व। सभी शापों एवं पापों से मुक्त करने वाली रीं रेतः स्वरूपिणी महाशक्ति भगवती पीरी का री ही रीं बीज है।
आचार्य श्री रविन्द्र प्रसाद दैवज्ञ के ध्यान के दौरान प्रस्फुटित हुए विचारों से यह स्पष्ट होता है कि पीरी अनादि काल से ही तप की भूमि रही है और पीरी में इसी पीली/पीताम्बर भूमि पर “उदधिक्रमण संकटमोचन धाम” का निर्माण आनायास नही बल्कि सतयुग से ही पूर्व निर्धारित था |